यूपी और बिहार समेत देश के कई राज्यों में छठ पूजा बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। इस पूजा में भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। नहाय-खाय के साथ शुरू छठ महापर्व की शुरुआत होती है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस व्रत का समापन होता है। चारों ओर छठ गीतों से माहौल गुंजायमान होता है। वैसे तो इस मौके पर छठ की शुरूआत से छठ की पारंपरिक लोकगीत बहुत ही पसंद किए जाते हैं।
इस पर्व में छठ मैया के गीतों का खास महत्व है। इस बार छठ पूजा के मौके पर छठ मैया के भोजपुरी लोकगीत, छठ गीत काफी पसंद किए जा रहे हैं।
छठ पूजा कार्यक्रम
Chhath Puja 2020 Date and Time
18 नवंबर 2020 दिन बुधवार– चतुर्थी (नहाय-खाय) – इस पावन पर्व छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि से होती है। यह छठ पूजा का पहला दिन होता है, इस दिन नहाय खाय कहा जाता है। इस वर्ष नहाय-खाय 18 नवंबर 2020 दिन बुधवार को है। हम आप को बता दे की इस दिन सूर्योदय सुबह 06:46 बजे और सूर्योस्त शाम को 05:26 बजे पर होगा।
19 नवंबर 2020 दिन गुरुवार – पंचमी (खरना)- kharana छठ पूजा का दूसरा दिन होता है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है और हम आप बता दे की इस वर्ष लोहंडा और खरना 19 नवंबर दिन गुरुवार को है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:47 बजे पर होगा और सूर्योस्त शाम को 05:26 बजे पर होगा।
20 नवंबर 2020 दिन शुक्रवार – षष्ठी (डूबते सूर्य को अर्घ्य)- इस दिन ही छठ पूजा होती है। इस दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है इस वर्ष छठ पूजा 20 नवंबर को है। इस दिन सूर्यादय 06:48 बजे पर होगा और सूर्योस्त 05:26 बजे पर होगा। छठ पूजा के लिए षष्ठी तिथि का प्रारम्भ 19 नवंबर को रात 09:59 बजे से हो रहा है, जो 20 नवंबर को रात 09:29 बजे तक है।
21 नवंबर 2020, शनिवार – सप्तमी (उगते सूर्य को अर्घ्य)- छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि होती है। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। उसके बाद पारण कर व्रत को पूरा किया जाता है। इस वर्ष छठ पूजा का सूर्योदय अर्घ्य तथा पारण 21 नवंबर को होगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:49 बजे तथा सूर्योस्त शाम को 05:25 बजे होगा।
छठ गीत (chhath geet) : kanch hi bansh ki bahangiya
कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय
बहंगी लचकत जाय
होई ना बलम जी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाय
कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय
बहंगी लचकत जाय
बाट जे पूछेला बटोहिया बहंगी केकरा के जाय
बहंगी केकरा के जाय
तू तो आन्हर होवे रे बटोहिया बहंगी छठ मैया के जाय
बहंगी छठ मैया के जाय
ओहरे जे बारी छठि मैया बहंगी उनका के जाय
बहंगी उनका के जाय
कांच ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय
बहंगी लचकत जाय
होई ना देवर जी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाय
बहंगी घाटे पहुंचाय
ऊंहवे जे बारि छठि मैया बहंगी के उनके के जाय
बहंगी उनका के जाय
बाट जे पूछेला बटोहिया बहंगी केकरा के जाय
बहंगी केकरा के जाय
तू तो आन्हर होवे रे बटोहिया बहंगी छठ मैया के जाय
बहंगी छठ मैया के जाय
ऊंहवे जे बारी छठि मैया बहंगी उनका के जाय
बहंगी उनका के जाय
छठ पूजा विधि (chhath puja vidhi)
खाए नहाय: छठ पूजा व्रत चार दिन तक किया जाता है। इसके पहले दिन नहाने खाने की विधि होती है। जिसमें व्यक्ति को घर की सफाई करना चाहिए एवं स्वयं शुद्ध होना चाहिए। तथा केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन ही करना चाहिए।
खरना: इसके दूसरे दिन खरना की विधि की जाती है। खरना में व्यक्ति को पूरे दिन का उपवास रखकर, शाम के समय गन्ने का रस या गुड़ में बने हुए चावल की खीर को प्रसाद के रूप में खाना चाहिए।और प्रसाद के रूप में आस पड़ोस के लोगो को खिलाना चाहिए। इस दिन बनी गुड़ की खीर बहुत स्वादिष्ठ होती है।
शाम का अर्घ्य: तीसरे दिन सूर्य षष्ठी को पूरे दिन उपवास रखकर शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पूजा की सामग्रियों को लकड़ी के डालीया में रखकर घाट पर ले जाना चाहिए। शाम को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर आकर सारा सामान वैसी ही रखना चाहिए। इस दिन रात के समय छठी माता के गीत गाने चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए।
सुबह का अर्घ्य: इसके बाद घर लौटकर अगले (चौथे) दिन सुबह-सुबह सूर्य निकलने से पहले ही घाट पर पहुंचना चाहिए। उगते हुए सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद घाट पर छठ माता को प्रणाम कर उनसे संतान-रक्षा का वर मांगना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद घर लौटकर सभी में प्रसाद वितरण करना चाहिए तथा स्वयं भी प्रसाद खाकर व्रत खोलना चाहिए।
chhath puja ki pauranik katha
पौराणिक कथा के अनुसार – प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं।
नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।
देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्टी के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि -विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।
छठ व्रत एक अन्य कथा के अनुसार – जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
छठ पूजा के मंत्र (chhath puja ke mantra)
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नमः