Bhimrao Ramji Ambedkar जीवन की कुछ विशेष बाते और जीवन परिचय

Bhimrao Ramji Ambedkar Some special things in life and life introduction

भारतीय संविधान के पिता डॉ भीमराव अम्बेडकर की पहचान एक न्यायवादी, समाज सुधारक, प्रखर राजनेता थे। स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री भीमराव अम्बेडकर की पहचान ना केवल एक स्वतंत्रता सेनानी की हैं बल्कि भारत के महापुरुषों में भी उनका स्थान है। जो देश में अस्पृश्यता और जातिगत प्रतिबंधों, और अन्य सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए उनके प्रयास किया करते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को सशक्त बनाने और अधिकारों की रक्षा में लगा दिया। अम्बेडकर जी ने कमजोर और पिछड़े वर्ग के बीच फैली अशिक्षा, गरीबी, शोषण जैसी अन्य समस्याओं, को कम करने के साथ उनके लिए सामाजिक अधिकारों और हितों की रक्षा की। स्वतंत्र भारत का संविधान बनाकर अम्बेडकर जी ने ये सुनिश्चित किया कि भविष्य के भारत में सामाजिक असमानता खत्म हो और दलित एवं पिछड़े वर्ग का शोषण ना हो।

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प्रारम्भिक जीवन (Ambedkar early life)
नाम (Name) भीमराव रामजी अम्बेडकर
वास्तविक नाम (Real Name) अम्बावाडेकर
लोकप्रिय नाम (Popular name) बाबा साहेब
जन्म (Birth date) 14 अप्रैल 1891
जन्मस्थान (Birth place) महू,मध्यप्रदेश
धर्म (Religion) जन्म से हिन्दू बाद में बौद्ध
जाति (Cast) महार
राष्ट्रीयता (Nationality) भारतीय

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बाबासाहेब के पिताजी भारतीय आर्मी में सूबेदार थे। भीमराव अपने 14 भाई बहिनों में से सबसे छोटे थे. 1894 में पूरा परिवार सतारा शिफ्ट हो गया और कुछ समय बाद 1896 में भीमराव की माता का देहांत हो गया। माता के देहांत के बाद बाबासाहेब की परवरिश उनकी बुआ ने किया। इस दौरान उन्हें बहुत सी आर्थिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। अम्बेडकर जी के अध्यापक महादेव अम्बेडकर जो कि स्वयं ब्राह्मण थे, उन्होंने बाबासाहेब का सरनेम अम्बवाड़ेकर से अम्बेडकर करने का सुझाव दिया।

निजी जीवन और विवाह

अबेडकर जी ने दो साड़ियां की थी। अबेडकर जी अपना पहला विवाह 1906 में हुआ था, तब इनकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी और उनकी पत्नी 9 वर्ष थी उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम यशवंत रखा गया। 1935 में इनकी पहली पत्नी रमाबाई की मृत्यु हो गयी। जब बाबासाहेब नींद की कमी और न्यूरोटिक बीमारी से जूझ रहे थे वे डॉक्टर शारदा कबीर से मिले और उन दोनों ने आजादी के बाद 15 अप्रैल 1948 को विवाह कर लिया। शादी के बाद डॉक्टर शारदा ने अपना नाम सविता अम्बेडकर कर लिया।

शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन

अम्बेडकर जी को स्कूल के दिनों में काफी छुआछूत का समाना करना पड़ा था। समाज के डर के चलते आर्मी स्कूल में ब्राह्मिनो के बच्चों को अन्य पिछड़े वर्ग के बच्चो से अलग बैठाया जाता था। उन्होंने लिखा भी हैं कि कैसे स्कूल में पानी पीने का मूलभूत अधिकार तक नही था, पानी पिने के लिए चपरासी (पियोन) की आवश्कता होती थी, यदि चपरासी ना हो तो पानी भी नही मिलता था। पिताजी के आर्मी में होने के कारण अम्बेडकर जी को अच्छी शिक्षा मिल गयी थी और साथ ही जीवन लक्ष्य भी मिल गया था, अम्बेडकर जी ने बचपन में ही ये दृढ-निर्णय कर लिया था कि वो अपने समाज को मूलभूत अधिकार दिलाकर रहेंगे।

अम्बेडकर जी ने १९०७ में अपनी मेट्रिक की पढाई पूरी करने बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए एलफिनस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया, और फिर से पहली बार अपने वर्ग में किसी के यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले व्यक्ति बन गये। इनकी इस सफलता से उनका पूरा समाज बहुत ही उत्साहित हो गया और इसके लिए उत्सव मनाने लगा लेकिन अम्बेडकर जी के पिताजी इसकी आज्ञा नहीं दी, उनका मानना था कि सफलता उनके बेटे के सर पर चढ़ जाएगी। 1912 में अपनी स्नातक की डिग्री इकोनॉमिक्स और राजनीति विज्ञान विषय से किए थे।

डिग्री करने के बाद थोड़े समय के लिए बडौदा राज्य सरकार में नौकरी की जिसके बाद उन्हें बडौदा स्टेट स्कालरशिप दिया गया जिससे उन्हें न्यूयॉर्क में कोलंबिया यूनिवर्सिटी जाकर पोस्ट-ग्रेजुएट करने का मौका मिला। इस तरह 1913 में वो आगे की पढाई के लिए अमेरिका चले गये।
1915 में उन्होंने अपना एमए समाजशास्त्र, इतिहास,फिलोसोफी और एंथ्रोपोलॉजी में पूरा किया। और 1916 में वो लन्दन चले गये जहां उन्होंने लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के “साठ बार एट ग्रेज इन्” (Bar at Gray’s Inn) में दाखिला लिया और इस तरह अगले 2 सालों में इकोनॉमिक्स में पीएचडी हासिल की।

अम्बेडकर का करियर

पढाई पूरी होते ही 1917 में अम्बेडकर जी भारत लौटने के बाद इन्होने प्रिंसली स्टेट ऑफ़ बड़ोदा के लिए डिफेन्स सेक्रेट्री के रूप में काम शुरू किया. हालांकि इस काम के दौरान उन्हें काफी अपमान और सामाजिक छुआछूत का सामना करना पड़ा था। सामाजिक बुराइयों के वजह से इन्होने नौकरी छोड़कर इन्होंने प्राइवेट ट्यूटर और अकाउंटेंट के रूप में काम करना शुरू किया।

बाबासाहेब जी ने कंसल्टेंसी बिजनेस शुरू किया जो कि सामाजिक स्थिति के कारण नही चल सका। उसके बाद 1918 में उन्होंने मुंबई के सिडेन्हाम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में पढाने के साथ इन्होंने वकालात का भी काम किया।

जातिगत भेदभाव का शिकार बनने के कारण इन्हे अपने समाज का उत्थान करने की प्रेरणा मिली और कोल्हापुर के महाराज की मदद से अम्बेडकर जी ने एक साप्ताहिक जर्नल मूकनायक शुरू किया जो कि हिन्दुओ के कट्टर रीति रिवाजों की आलोचना करता था,और राजनीतिज्ञों को इस असमानता के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करता था।
1920 में अम्बेडकर जी ने अपने जाति के लोगों की हितों की रक्षा में काम करने के लिये सक्रिय कदम उठाने शुरू कर दिए थे। अम्बेडकर जी ने बहुत से विरोधी रैलियाँ,भाषण आयोजित किये, और लोगों को छुआछूत के खिलाफ आगे आने को लेकर प्रेरित किया और पब्लिक के लिए उपलब्ध टैंक से पानी पीने के अधिकार को समझाया, अम्बेडकर ने मनु स्मृति को जलाया,जो कि जातिवाद का समर्थन करती थी।

1921 में पर्याप्त धन कमाने के बाद एक बार फिर अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लन्दन चले गये। जहां उन्होंने लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। 1923 में उन्हें लन्दन के बार एट ग्रेज इन में बुला लिया गया 2 वर्ष बाद उन्होंने इकोनॉमिक्स में डी.एस.सी की डिग्री ली. लॉ की डिग्री पूरी करने के बाद वो ब्रिटिश बार में बेरिस्टर बन गये।

1921 तक अम्बेडकर प्रोफेशनल इकोनॉमिस्ट थे। उन्होंने हिल्टन यंग कमिशन में प्रभावशाली पेपर भी लिखे थे जिससे रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया का आधार तैयार हुआ। 1923 में उन्होंने “दी प्रोब्लम ऑफ़ रूपी,इट्स ओरिगिंस एंड सोल्यूशन में उन्होंने रूपये की प्राइस स्टेबिलिटी के महत्व को समझाया। अम्बेडकर जी ने ये भी बताया कि कैसे भारतीय अर्थव्यवस्था को सफलता पुर्वक आगे ले जाया जा सकता हैं। भारत लौटने पर उन्होंने देश के लिए लीगल प्रोफेशनल के रूप में काम करना शुरू कर दिया।

1924 में अम्बेडकर ने अस्पृश्यता और छुआछूत को पूरी तरह से समाप्त करने के लक्ष्य के साथ बहिष्कृत हितकारिणी संस्था की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य पिछड़े वर्ग को सामजिक-आर्थिक प्रगति दिलाना और शिक्षा उपलब्ध करवाना था। इस संस्था का मुख्य सिद्धांत समाज के पिछड़े लोगों को “शिक्षित, उत्साहित और व्यवस्थित करना था।

महाद सत्याग्रह

1927 में उन्होंने छुआछूत के खिलाफ बहुत ही बड़ा अभियान शुरू कर दिया, और अपना पूरा समय दलितों के लिए विपरीत स्थितियां एवं समाज में फैली असमानता को दूर और समाज में समानता का अधिकार मिल सके। समाज में फैली असमानता के कारण मन में आक्रोश होते हुए भी हिंसा का मार्ग ना अपनाकर इन्होंने गांधीजी के मार्ग को अपना लिया और सत्याग्रह अभियान के तहत छुआछुत के अधिकार, जल-स्त्रोत से पानी लेने और मन्दिर में घुसने की आज़ादी देने की वकालत करते रहे।
अम्बेडकर जी ने महारष्ट्र के महाद में एक सत्याग्रह शुरू किया जिसे “महाद सत्याग्रह” के नाम से जाना जाता हैं। गांधीजी की दांडी मार्च के भी 3 साल पहले महाद सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी जिसका उद्देश्य, दलितों को पीने का पानी मिले, समाज में समानता का अधिकार मिल सके। कुछ दलित लोगों के समूह में उन्होंने महाद के चवदार झील में पानी पीया था, जंहा दलितों और शूद्रों को झील का पानी पीना अपराध था। उन्होंने कहा कि हम चवदार झील पानी पीने इस लिए जा रहे हैं हम भी इंसान हैं इस कारण ये हमारा अधिकार हैं। इस सत्याग्रह का उद्देश्य यही हैं कि हमे समाज में समानता का अधिकार मिल सके।
1930 में वो 15,००० से भी ज्यादा अछूत लोगों के साथ मिलकर अहिंसा पूर्वक आंदोलन करते हुए कालाराम मंदिर गये।1932 में उनकी बढती लोकप्रियता और समाज के अंदर अच्छे कम्मो को देखते हुए लन्दन में सेकंड राउंड टेबल कांफ्रेंस में शामिल होने का निमंत्रण मिला। अम्बेडकर जी को पूरा विश्वास था कि अछूतों को न्याय तभी मिलगा जब उन्हें पृथक मतदाता बनाया जाये और अंग्रेज भी उनकी पृथक मतदाताओं की बात पर सहमत हो गये थे। लेकिन महात्मा गांधी ने इस प्लान का विरोध कर दिया और उपवास शुरू कर दिया जिससे समाज में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो गयी, और अम्बेडकर कट्टर हिन्दू और दलित दो वर्गों में हिन्दुओं के विभाजन को देखते हुए गांधी की बात पर सहमत हो हुए और उन्होंने एक संधि की जिसे पूना पैक्ट कहा गया। जिसके अनुसार सेंट्रल काउंसिल ऑफ़ स्टेट्स और क्षेत्रीय विधानसभा में स्पेशल इलेक्टोरेट के स्थान पर पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की बात मानी गयी।
अम्बेडकर जी यह चाहते थे कि स्वतन्त्रता के साथ हमे एक ऐसा स्वराज मिले जिसमे यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि स्वराज का लाभ देश के प्रत्येक व्यक्ति को मिले। 1935 में इन्हे गवर्नमेंट लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल पद पर नियुक्त हुए और 2 साल तक इस पड़ा पर कार्य किये। इसके बाद उन्होंने एक स्वतंत्र मजदूर पार्टी की स्थापना की, और इस पार्टी ने 1937 में हुए बोम्बे इलेक्शन में भाग लिया और १४ सीट भी जीती।
उन्होंने वायसरॉय के एग्जीक्यूटिव काउंसिल में मजदूरों के मंत्री के रूप में काम किया। अम्बेडकर जी शिक्षा के प्रति लग्न, मेहनत और तीव्र बुद्धिमता का परिणाम था कि उन्हें स्वतंत्र भारत के कानून मंत्री बनने और संविधान निर्माण का मौका मिला। उनके बनाये संविधान के कारण देश में सामजिक असमानता की समाप्ति हुयी, इससे नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता मिली, अस्पृश्यता दूर हुयी, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा शुरू हुयी और नौकरी के लिए आरक्षण एवं शिक्षा का समान अधिकार देश के हर वर्ग के लोगों को मिल रहा है।

अम्बेडकर जी ने स्वतंत्र भारत में संविधान निर्माता के रूप में मुख्य भूमिका निभाई और देश में वित्त आयोग की स्थापना में भी मदद की थी। इनकी बनाई नीतियों के कारण ही देश ने आर्थिक और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में प्रगति कर रहा है। उन्होंने देश स्थिर और मुक्त अर्थव्यवस्था पर जोर दिया। १९५१ में, उनके द्वारा प्रस्तावित हिंदू संहिता विधेयक को अनिश्चितकालीन रोक के बाद, इन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। बाद में अम्बेडकर जी को राज्यसभा में नियुक्त किया गया और मरते दम तक राज्यसभा के सदस्य थे।

अम्बेडकर का धर्म परिवर्तन

जब अम्बेडकर जी श्रीलंका गये तब वहाँ उन्होंने बुद्धिस्ट स्कॉलर के ज्ञान सूना और इसके बाद उन्होंने हिन्दु धर्म छोडकर बौद्ध धर्म अपना लिया और बुद्धिज्म पर “दी बुद्धा एंड हिज धर्म” नामक किताब लिखी। उन्होंने 1955 में भारतीय बुद्ध महासभा की स्थापना की,और 1956 में अपनी किताब का काम पूरा किया जिसका नाम “दी बुद्धा एंड हिज धर्म” था। हालांकि ये किताब उनके मृत्यु के बाद प्रकाशित हुयी। जैसे ही उन्होंने बुद्ध धर्म अपनाया उनके पीछे-पीछे 500,000 लोगों ने भी बुध्द धर्म अपना लिया, उस समय भारत में यह सबसे बडडा धर्म परिवर्तन था और फिर एक बार भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।

मृत्यु

जीवन के अंतिम वर्षों में भीमराव का स्वास्थ खराब रहने लगा था। 1948 में डायबिटीज होने के कारण आँखों की रोशनी भी कम होने लगी और 6 दिसम्बर 1956 को अंतिम सांस ली। हिन्दू धर्म छोडकर बौद्ध धर्म अपनाने कि वजह से इनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के अनुसार किया गया। अंतिम संस्कार में लाखों की संख्या में उनके समर्थक और अनुयायी शामिल हुए। सन 1990 में मरणोपरान्त भारत रतन दिया गया।

अम्बेडकर के सुविचार

1. मैं समाज की प्रगति का मानक उसमें रहने वाली महिलाओं की प्रगति को मानता हूँ।
2. यदि मैंने देखा कि संविधान का गलत उपयोग हो रहा हैं, तो मैं ही वो पहला व्यक्ति हु जो इसे जला देगा।
3. पति-पत्नी के मध्य दोस्ती का सम्बंध होना चाहिए।
4. जो धर्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुता सिखाता हैं, मुझे वो धर्म पसंद हैं।
5. जरूरी नही कि जीवन लम्बा हो, जरूरी हैं कि जीवन महान हो।
6. हालांकि मेरा जन्म हिन्दू के रूप में हुआ हैं लेकिन मैं ये सुनिश्चित करूंगा कि हिन्दू के रूप में ना मरुँ।
7. मनुष्य के लिए धर्म हैं, धर्म के लिए मनुष्य नहीं हैं।

अम्बेडकर ने भारत को सभ्यता, संस्कृति में परिवर्तन के अलावा राजनीति और समाजिक परिप्रेक्ष्य में भी अमूल्य दरोहर प्रदान की हैं। उन्होंने समानता के अधिकार को सम्विधान में स्थान देकर भारत में सामजिक विकास के एक नये अध्याय की शुरुआत की।

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