लोकसभा चुनावों से पहले केंद्र की मोदी सरकार ने बड़ा राजनीति दाव खेला है। आर्थिक तौर पर कमज़ोर सवर्णों को सरकारी नौकरियों में 10 फ़ीसदी आरक्षण देने का फ़ैसला किया है तथा इसके लिए सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में संविधान संशोधन बिल पेश किया गया और उसे पास भी कर लिया गया। बिल के समर्थन में कुल 323 वोट और विरोध में महज 3 वोट पड़े। ऐसा मानना है की राज्यसभा में बुधवार को इस बिल को पेश किया जाएगा। इस विधेयक को लेकर मंगलवार को करीब 5 घंटे तक चली बहस में लगभग सभी दलों ने इसका पक्ष लिया, लेकिन किसी ने भी इसका खुलकर विरोध नहीं किया। हालांकि कई सांसदों ने इस विधेयक को लेकर सरकार की नीयत पर सवाल भी खड़े किए।
विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने कहा कि वह आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए लाए गए विधेयक के समर्थन में है, लेकिन उसे सरकार की मंशा पर शक है। पार्टी ने कहा कि सरकार का यह कदम महज एक ‘चुनावी जुमला’ है और इसका मकसद आगामी चुनावों में फायदा हासिल करना है। वहीं दूसरे पार्टी जैसे बसपा, सपा, तेदेपा और द्रमुक सहित विभिन्न पार्टियों ने इसे भाजपा का चुनावी स्टंट करार दिया।
हम आप को बता दें कि बीजेपी ने अपने सभी सांसदों को लोकसभा में मौजूद रहने के लिए व्हिप जारी किया था। गरीब सवर्णों के लिए 10 फ़ीसदी का यह आरक्षण 50 फ़ीसदी की सीमा से अलग होगा और केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को इस संशोधन को मंज़ूरी दी थी। माना जा रहा है कि सरकार ने ये क़दम बीजेपी से नाराज़ चल रहे सवर्णों के एक बड़े धड़े को लुभाने के लिए उठाया है। इसी बीच शीत सत्र में राज्यसभा की कार्यवाही एक दिन बढ़ा दी गई है, यानी अब राज्यसभा में 9 जनवरी तक कामकाज होगा। माना जा रहा है कि सरकार ग़रीब सवर्णों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने का जो संविधान संशोधन बिल लाने जा रही है, उसी के मद्देनज़र राज्यसभा की कार्यवाही बढ़ाई गई है।