याद है वो रात –
अयोध्या के मुसलमानों को अब भी 6 दिसंबर, 1992 कीं डरावनी रात याद है, जब उन्होंने यहां के कुछ अन्य मुस्लिम बाशिंदों के साथ अपनी जान की खातिर खेतों में शरण ली थी। तब ‘उन्मादी कारसेवकों कीं फौज ने बाबरी मस्जिद ढहा दी थी, जिसके बाद अशांति और डर का माहौल बन गया था । लोग इतने डर गए थे कि उन्हें नहीं पता था किं वे क्या करें । ‘
दोहराई जा सकती 1922 कि घटना –
अब राम मंदिर मुद्दा फिर कुछ नेताओं और संघ परिवार द्वारा उठाया जा रहा है और अयोध्या के ‘नाजुक शांतिपूर्ण माहौल’ के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है । जबकि यहां के बाशिंदे 26 साल बाद अब भी इस त्रासदी से उबरने के लिए प्रयत्नशील हैं। मुसलमानों ने अफसोस प्रकट किया, ‘हर साल इस समय हम उन मनोभावों से जूझते है। हमने अतीत को पीछा छोडने का प्रयास किया लेकिन त्रासद यादें जाती नहीं हैं । अयोध्या और अन्यत्र मंदिर मुद्दे पर शोर शराबे से जखम हरे हो जाते है । ‘
हिंदू परिवार ने दी थीं मुसलमानों को शरण –
वह कहते है कि वह दुर्भाग्यपूर्ण रात अब भी उनकी नजरों के सामने घूमती है । जब दो समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे ही रहे थे, तब एक हिंदू परिवार ने उन्हें शरण दी थी । उन्होंने कहा, ‘हमने पूरी रात खेत में गुजारी । बहुत ठंड और दर्दभरी रात थी, वे कभी नहीं भूल पाएंगे। ‘
हो जाते है विचलित –
मुस्लिम इस घटना की चर्चा से विचलित हो जाते है और कहते हैं, ‘तब हम असुरक्षित थे और आज भी हम तब असुरक्षा महसूस करते है, जब बाहर से भीड़ (उनका इशारा वीएचपी की धर्मसभा) हमारे शहर की ओर आती है।
त्रासदी को सिर्फ मुस्लिम ही नही हिन्दू भी झेल रहे हैं – ऐसा नहीं है किं केवल अल्पसंख्यक समुदाय ही दर्द महसूस कर रहा है । विवादित रामजन्मभूमि ढांचे के समीप रहने वाले पेशे से चिकित्सक विजय सिंह जिस दिन मस्जिद ढहाई गई थी, उस दिन वह अयोध्या में ही थे और उन्होंने हिंसा देखी थीं ।
उन्होंने कहा, ‘यह बडा डरावना था । हम एक और अयोध्या त्रासदी नही चाहते है । हम शांतिपूर्ण माहौल चाहते हैं लेकिन नेता अपने अजेंडे के तहत भावनाएं भड़काते है। 1992 में भी इस ढांचे को ढहाने के लिए बाहर से बडी संख्या में लोग लाए गए थे । यह त्रासद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, जो आज धी अयोध्या के जेहन में है । ‘
शबनम हाशमी ने कहा –
सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा कि अयोध्या प्राचीन संस्कृति और सांप्रदायिक सद्भाव का स्थान रहा है लेकिन 1992 में मेल जोल वाली प्रकृति छीन ली गई और शहर अब भी उसकी कीमत चुका रहा है ।