हम आप को बता दे की सवर्णों को आर्थिक आधार पर दिये गए 10% आरक्षण के ऊपर सुप्रीम कोर्ट ने बड़े कदम उठाये है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है और 4 हफ्तों के भीतर जवाब माँगा है। ऐसे में एक प्रश्न उठता है की क्या सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर रोक लगाने की सोच रही है ? हम आप को बता दे की आरक्षण के रोक के लिए दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को नोटिस भेजा है और इतना ही नहीं चार हफ्ते के भीतर ही जवाब भी माँगा है । हालांकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अध्यक्षता वाली बेंच ने फ़िलहाल आरक्षण पर तत्काल रोक लगाने से मना किया है। कोर्ट ने कहा की वो अपने अस्तर से इस पुरे मामले का निरक्षण करेगी ।
वही सामान्य वर्ग के गरीबो को 10% आरक्षण देने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ एक और याचिका दायर की गयी है । तहसील पूनावाला के ओर से दायर याचिका में कहा गया है की मोदी सरकार का फैसला सविधान के मौलिक भावना के साथ छेड़ छाड़ है साथ ही आरक्षण के लिए सविधान में जो अधिकतम सीमा 50% तय की गयी है ये उसका भी उलंघन है। अर्जी में कहा गया है की सविंधान के अनुच्छेद 16 में समाजिक पिछड़े पन के आधार पर आरक्षण देने की बात है। मोदी सरकार ने सविंधान में संशोधन कर उसमे आर्थिक आधार भी जोड़ा है जबकि आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान सविंधान में कही नहीं है ।
वही आप को बता दे की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज चेल्मेस्वर ने भी सरकार के फैसले पर सवाल उठाये है । उन्होंने कहा की “सविंधान के आनुसार संसद या विधानसभा को समाज के समाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गो को आरक्षण देने को कहा गया था। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गो के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है EWUS आरक्षण आदालत में किस हद तक टिकेगा, मुझे नहीं पता और ये देखा जाना बाकि है। मै केवल ये कह सकता हु की सविंधान में इसकी इजाजत नहीं है ।” गौरतलब है की जस्टिस चेल्मेस्वर उन चार सुप्रीम जजों में से है जिन्होंने पिछले साल प्रेश कांफ्रेंस कर बताया था की भारत में लोकतंत्र खतरे में है।