अंगकोर वाट मंदिर ( temple of Angkor Wat )
अंकोरवाट (खमेर भाषा) कंबोडिया ( cambodia ) मे एक मंदिर परिसर और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक हैं। अंगकोर वाट मंदिर ( Angkor Wat ) 162.66 हेक्टेयर(1,626,000 वर्ग मीटर; 402 एकड़) में फैला हुआ है। यह मंदिर संसार मे अत्यधिक सुप्रसिद्ध हैं।इस मंदिर मे सभी देवताओं की पूजा बड़े आस्था से किया जाता हैं। angkor wat मंदिर घूमने के लिए जो पास लगता है वो आप कैसे ऑनलाइन खरीद सकते है। ये जानने के लिए आप यहाँ क्लिक करे। Online Angkor Pass या Angkor wat tickets कहां से और कैसे खरीदें ?
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यह मूल रूप से खमेर साम्राज्य के लिए भगवान विष्णु के एक हिन्दू मंदिर के रुप मे बनाया गया था,जो धीरे-धीरे 12वी शताब्दी के अन्त मे बौद्ध मंदिर मे परिवर्तित हो गया था। यह कंबोडिया के अंकोर मे हैं जिसका पुराना नाम “यशोधरपुर” ( Yaśodharapura ) था।
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इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्धितीय के शासनकाल मे हुआ था।यह विष्णु मंदिर हैं जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकोंने प्रायः शिवमंदिर का निर्माण किया था।मीकांग नदी” के किनारे सिमरिप शहर मे बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर हैं जो सैकड़ों वर्ग मील मे फैला हुआ है।”राष्ट के लिए सम्मान के चिन्ह इस मंदिर को कंबोडिया के राष्ट्रध्वज मे भी स्थान दिया गया हैं।यह मंदिर मेरू पर्वत का भी प्रतीक हैं।
जाने अंगकोर वाट मंदिर के बारे में ( about Angkor Wat Temple )
अनुश्रुति के अनुसार,इस राज्य का सस्थांपक कौडिन्य ब्राह्मण था जिसका नाम वहाँ के एक संस्कृत अभिलेख मे मिला।नवी शताब्दी ईसवी मे जयवर्मा तृतीय कंबुज का राजा हुआ और उसी ने लगभग 760 ईसवी मे अंगकोरथोम (थोम का अर्थ “राजधानी”) की नींव डाली ।
आज का अंगकोरथोम एक विशाल नगर का खण्डहर हैं। उसके चारों ओर 330 फुट चौड़ी खाई हैं जो सदा जल से भरी रहती थी।नगर और खाई के बीच एक विशाल वर्गाकार प्राचीर नगर की रक्षा करती हैं। प्राचीर मे कई ढेर सारे सुन्दर और विशाल महाद्धार बने हैं।नगर केठीक बीचोबीच शिव का विशाल मंदिर हैं जिसके तीन भाग हैं। हर एक भाग मे एक ऊँचा शिखर हैं।मंदिर की विशालता और बनने की कला आश्चर्यजनक हैं।इस मंदिर की दीवारों को पशु,पक्षी,पुष्प एवं नृत्यगनाओ जैसी कई स्वरूप से सजाया गया हैं।यह मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से संसार की दृष्टि से एक आश्चर्यजनक वस्तु हैं और भारत के पुराने पौराणिक मंदिर के अवशेषो मे तो एक हैं।
12वी शताब्दी के लगभग सूर्यवर्मा द्धितीय ने अंग्कोरथोम मे विष्णु का एक विशाल मंदिर बनवाया।इस मंदिर की सुरक्षा भी एक चतुर्दिक खाई करती हैं जिसकी चौड़ाई लगभग 700 फुट हैं।इसे दूर से देखने पर यह खाई झील की भाँति दिखाई देते हैं।अंग्कोरथोम जिस कंबुज देश की राजधानी था।उस मंदिर मे विष्णु,शिव ,शक्ति,गणेश आदि देवताओं की पूजा प्रचलित थी । इनमे भारतीय सांस्कृतिक परम्परा जीवित पाई गयीं थी। अंग्कोरवाट के हिन्दू मंदिरों पर बौद्ध धर्म का बाद मे गहरा प्रभाव पड़ा।संसार के अलग-अलग भागों से कई हजार पयर्टक उस पुराने हिन्दू-बौद्ध-केंद्र के दर्शनो के लिए वहाँ हर साल जाते हैं।
अंगकोर वाट मंदिर का स्थापत्य
खमेर ( khamer ) शास्त्रीय शैली से मोहित वास्तु कला इस मंदिर को बनाने की कार्य विधि सूर्यवर्मन द्धितीय ने प्रारम्भ किया लेकिन वे इसे पूरा नहीं कर सके।मंदिर का कार्य उनके भानजे एवं बनने वाले राजा धरणीन्द्व वर्मन के शासनकाल मे पूरा हुआ। इसका मूल शिखर लगभग64 मीटर ऊँचा हैं।मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ था;उसके बाहर 30मीटर खुली भूमि हैं।
मंदिर के गलियारों मे जल्द मे बने सम्राट,बलि-वामन ,स्वर्ग-नरक, समुद्र-मंथन,देव-दानव युद्ध ,महाभारत,हरिवंश पुराण तथा रामायण से सम्बद्ध अनेक शिलाचित्र हैं।यहाँ के शिलाचित्रों मे रूपायित राम कथा बहुत सक्षिप्त हैं।
अंगकोर वाट मंदिर का निर्माण ( Construction of Angkor Wat Temple )
12वी शताब्दी के लगभग कबोंडिया नामक स्थान पर सूर्यवर्मा द्धितीय ने अंग्कोरथोम मे विष्णु का एक विशाल मंदिर बनवाया। मंदिर की पश्चिम की ओर इस खाई को पार करने के लिए एक पुल बना हुआ हैं। मंदिर बहुत बड़ा हो और इसकी दीवारों पर समस्त रामायण मूर्तियो मे अकिंत हैं। अंकोरवाट मंदिरो मे कलान्तर मे बौद्ध भिक्षुओं ने भी निवास किया।
अंगकोर वाट मंदिर का रहस्य ( Secret of Angkor Wat Temple )
ये मंदिर बहुत विशाल हैं। इस मंदिर को देखने से ज्ञात होता हैं कि विदेश मे जाकर भी यहाँ के कलाकारों ने भारतीय कला को जीवित रखा था। वर्तमान काल मे यह मंदिर विश्व के सभी लोगों के लिए आस्था का केन्द्र हैं।
अंगकोरवाट मंदिर कहाँ पर हैं ? ( Where is Angkor Wat Temple ? )
अंगकोरवाट आधुनिक कम्बोडियन शहर सिएम रीफ के उत्तर मे लगभग पाँच मील की दूरी पर स्थित हैं जहाँ की आबादी 5,00,000 से ज्यादा हैं।
अंगकोर वाट मंदिर के बारे मे प्रचलित कथाँए ( Popular stories about Angkor Wat Temple )
अंगकोर वाट मंदिर के संबंध मे कहा जाता हैं,कि देवो के राजा इन्द्रदेव ने इसे अपने पुत्र के लिए बनाया था,वहीं इसी समय के एक चीनी यात्री अपनी स्वयं के किताब मे लिखते हैं,कि अंगकोरवाट मंदिर किसी अद्रश्य शक्ति द्धारा इसका निर्माण मात्र एक ही रात्रि मे हुआ था ।इस मंदिर से जुड़ा
रोचक तथ्य यह भी हैं,कि यह संसार मे सबसे बड़ा विष्णु मंदिर हैं,जिसमे त्रिदेव की मूर्तियाँ स्थापित हैं.मंदिर की दीवारो को रामायण तथा महाभारत के चित्रों से सजायी गयीं हैं।
अंगकोर वाट मंदिर का इतिहास ( History of Angkor Wat Temple )
कम्बुज मे अंगकोर नामक स्थान के शुरुआत वास्तुशिल्पो मे कुछ मंदिर हैं, जिनकी भारतीय मंदिरो से बहुत कुछ साम्यता हैं.मंदिर के मध्य और किनारे के शिखर उन्तर भारतीय शैली के हैं.इस ढंग का उत्तम और पूरा नमूना अंगकोर वाट मे हैं।
इन भवनों की विशालता का अनुमान इसकी लम्बाई व चौड़ाई से लगा सकते है मंदिर के चार दीवारी के 650 फीट चौड़ी एवं 36 फीट चौड़ा पत्थर का रास्ता हैं ।खाई मंदिर के चारो ओर हैं उसकी लंबाई लगभग 2मील हैं पश्चिम फाटक से पहले बरामदे तक सड़क 1560 फीट लम्बी और7फीट उँची हैं ,तथा मंजिल का सबसे उपरी हिस्सा जमीन से 210 ऊँचाई पर हैं।
अंगकोर वाट मंदिर की आकृति ( Angkor Wat Temple Design )
*इस मंदिर मे सबसे ऊँचे शिखर की ऊँचाई 70 मीटर के करीब हैं। इसके अलावा54 की ऊँचाई वाले 8 शिखर और हैं।
*मंदिर के चारो ओर साढ़े तीन किलोमीटर लम्बी 15 फुट ऊँची पत्थरों से बनी दिवार हैं ये दीवार इस मंदिर केआसपास बसे शहर और लोगों आक्रमणकारियों से बचाने के लिए बनायी गयीं होगी।
* इस मंदिर को और इसके सबसे बाहरी दीवार को पत्थरो से बनायी गयीं थी जो आज भी कायम हैं, और जो कुछ भी लकड़ी और दुसरे समान से बनाया गया था वो नष्ट हो चुका हैं।
* इतिहासकारो के अनुसार मंदिर निर्माण की कला चौल वंश के मंदिरो से मिलती जुड़ती हैं ।ये मंदिर हिन्दू और बौद्ध दोनों धर्म के लोगों के लिए आज भी श्रद्धा और प्रेरणा का प्रतीक बना हुआ हैं।
अंगकोरवाट कंम्बोडिया मे दुनिया का सबसे बड़ा हिन्दू धार्मिक स्मारक हैं। इस मंदिर का जुड़ाव भारतीय संस्कृति से है इसलिए कहा जाता हैं कि यह मंदिर एक ही दिन मे अलौकिक शक्तियों के माध्यम से बना था । हिन्दू धर्म के सबसे अधिक अनुयायी भारत मे हैं। कहा जाता हैं कि राजा जयवर्मन अमर होने के लिए इस मंदिर का निर्माण किया था । जहाँ पर उसनें त्रिदेवो की मूर्ति रखकर पूजा शुरू की थी।