Annakut Festival How to make Annakut Bhog

दीपावली यानी दीवाली के अगले दिन गोवर्द्धन पूजा की जाती है। गोवर्दन पूजा के दिन भगवान कृष्‍ण, गोवर्द्धन पर्वत और गायों की पूजा का विधान है। इतना ही नहीं, इस दिन 56 या 108 तरह के पकवान बनाकर श्रीकृष्‍ण को उनका भोग लगाया जाता है। इन पकवानों को ‘अन्‍नकूट’ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी अंगुली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और इंसानी जिंदगियों को भगवान इंद्र के कोप से बचाया था। यानी भगवान कृष्‍ण ने देव राज इन्‍द्र के घमंड को चूर-चूर कर गोवर्द्धन पर्वत की पूजा की थी। इस दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन बनाते हैं।

अन्नकूट की रैसिपी

सामग्री
  1. आलू –  2
  2. बैगन – 2-3
  3. फूल गोभी –  1
  4. सेम – 100 ग्राम
  5. सैगरी – 100 ग्राम
  6. गाजर – 1
  7. मूली – 1
  8. टिन्डे – 2
  9. अरबी – 1
  10. भिंडी – 6 से 7
  11. परवल – 2 से 3
  12. शिमला मिर्च – 1
  13. लौकी – कटी हुई
  14. कच्चा केला – 1
  15. कद्दू – छोटा सा टुकड़ा
  16. टमाटर – 4 से 5

मसाला की सामग्री

  1. अदरक – 2 इंच लंबा टुकड़ा
  2. हरी मिर्च – 2-3
  3. हरी मैथी – कटी हुई एक छोटी कटोरी
  4. तेल – 3-4 टेबल स्पून
  5. हींग – 2-3 पिंच
  6. जीरा – एक छोटी चम्मच
  7. हल्दी पाउडर – एक छोटी चम्मच
  8. धनियां पाउडर – 2 छोटी चम्मच
  9. लाल मिर्च – 3/4 छोटी चम्मच
  10. अमचूर पाउडर – आधा छोटी चम्मच (यदि आप चाहें)
  11. गरम मसाला – आधा – एक छोटी चम्मच
  12. नमक – 1/2 छोटी चम्मच (स्वादानुसार)
  13. हरा धनियां – 100 ग्राम (बारीक कटा हुआ एक प्याली)

अन्नकूट बनाने की विधि

  1. धुली हुई सब्जियों से पानी हटाएं। आलू, बैगन, केला छीलकर बाकी सब्जियां मध्यम आकार में काट लें, मूली के पत्ते भी बारीक काट लें।
  2. हरी मिर्च और टमाटर छोटे आकार में काट लें। अदरक छीलकर कद्दूकस कर लें। हरा धनियां भी काट लें।
  3. एक बड़ी कढ़ाई में तेल डाल कर गरम करें, गरम तेल में हींग जीरा डाल कर तड़का लगाएं।
  4. जीरा भुनने के बाद हल्दी पाउडर, धनियां पाउडर डालिए हल्का सा भूनें, हरी मिर्च, अदरक डालकर मसाले को हल्का सा भून लें।
  5. अब सारी कटी हुई सब्जियां डालिए, आलू, बैगन और केला भी काट कर डाल दें। नमक और लाल मिर्च डाल कर सब्जी को चलाते हुये मिलाएं।
  6. सब्जी में करीब एक कप पानी डालें और सब्जी को ढककर पहले तेज गैस पर उबाल आने तक पकाएं।  उबाल आने के बाद धीमी गैस पर पकने दें।
  7. पांच मिनिट बाद सब्जी को चलाएं। फिर से सब्जी को 5 मिनिट के लिये ढककर धीमी गैस पकने दें। अगर सब्जी नरम नहीं तो ढककर और पकने दें।
  8. जब सब्जियां नरम हो जाए तब कटे हुए टमाटर डाल कर मिलाइये और सब्जी टमाटर नरम होने तक पकाएं। सब्जी में गरम मसाला, अमचूर पाउडर और हरा धनिया मिलाएं।
  9. स्वादिष्ट अन्नकूट तैयार है। अन्नकूट प्रसाद  को श्री बांकेबिहारी कृष्ण को भोग लगाने के बाद पूरी या रोटी के साथ परोसें।

गोवर्धन पर्वत की कहानी

Govardhan Parvat ki kahani

एक दिन भगवान कृष्ण ने देखा कि पूरे बृज में तरह तरह के मिष्ठान और पकवान बनाये जा रहे है। पूछने पर पता चला यह सब मेघ देवता इंद्र की पूजा के लिए तैयार हो रहा है। इंद्र प्रसन्न होंगे तभी वर्षा होगी। गायों को चारा मिलेगा , तभी वे दूध देंगी और हमारा काम चलेगा।

यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की निंदा करते हुए कहा कि पूजा उसी देवता की करनी चाहिए जो प्रत्यक्ष आकर पूजन सामग्री स्वीकार करे। इंद्र मे क्या शक्ति है जो पानी बरसाकर हमारी सहायता करेगा। उससे तो शक्तिशाली यह गोवर्धन पर्वत है , जो वर्षा का मूल कारण है , हमें इसकी पूजा करनी चाहिए।

इस बात की धूम मचने लगी। नन्दजी ने एक सभा बुलवाई और सबके सामने कृष्ण से पूछा कि इंद्र की पूजा  से तो दुर्भिक्ष उत्पीड़न समाप्त होगा। चौमासे के सुन्दर दिन आयेंगे। गोवर्धन पूजा से क्या लाभ होगा।

उत्तर में श्री कृष्ण ने गोवर्धन की बहुत प्रशंसा की और उसे गोप गोपियों का एकमात्र सहारा सिद्ध कर दिया। कृष्ण की बात से समस्त बृज मंडल प्रभावित हुआ।

उन्होंने घर जाकर अनेक प्रकार के व्यंजन , मिष्ठान आदि बनाये और गोवर्धन की तराई में कृष्ण द्वारा बताई विधि से भोग लगाकर पूजा की।

भगवान की कृपा से बृज वासियों द्वारा अर्पित समस्त पूजन सामग्री और भोग गिरिराज ने स्वीकार करके खूब आशीर्वाद दिया।

सभी लोग अपना पूजन सफल समझकर प्रसन्न हो रहे थे। तभी नारद जी इंद्र महोत्सव देखने के लिए बृज आये तो उन्हें पता चला की इस बार कृष्ण के बताये अनुसार इंद्र की बजाय गोवर्धन की पूजा की जा रही है।

यह सुनते ही नारद जी तुरंत इंद्र के पास पहुंचे और कहा – राजन , तुम तो यहाँ सुख की नींद सो रहे हो और उधर बृज मंडल में तुम्हारी पूजा बंद करके गोवर्धन की पूजा हो रही है ( गोवर्धन पर्वत की कथा … )

इसे  इंद्र ने अपना अपमान समझा और  मेघों को आज्ञा दी और कहा कि गोकुल जाकर प्रलयकारी  मूसलाधार वर्षा से पूरा गांव तहस नहस कर दे ( Govardhan maharaj ki katha ….)

पर्वताकार प्रलयकारी बादल , उनकी गर्जना और मूसलाधार बारिश से बृजवासी घबराकर कृष्ण की शरण में पहुंचे। उन्होंने पूछा कि अब क्या करें। कृष्ण ने कहा तुम गायों सहित गोवर्धन की शरण में चलो वह जरूर तुम्हारी रक्षा करेगा। सारे ग्वाल बाल गोवर्धन की तराई में पहुँच गये।

श्री कृष्ण ने गोवर्धन को कनीष्ठा अंगुली पर उठा लिया। सभी बृज वासी सात दिन तक उसके नीचे सुख पूर्वक रहे। उन्हें किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं हुई।

इंद्र ने पूरा जोर लगा लिया पर वह बृज वासियों का कुछ बिगाड़ नहीं पाया। भगवान की महिमा को समझकर अपना गर्व त्यागकर वह स्वयं बृज में गया और भगवान कृष्ण के चरणों में गिरकर अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करने लगा। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रख दिया।

उन्होंने गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट हर वर्ष मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

बोलो श्री गोवर्धन महाराज की जय !!!

गोवर्द्धन पूजा की विधि

गोदवर्द्धन पूजा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शरीर पर तेल लगाने के बाद स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें।
अब अपने ईष्‍ट देवता का ध्‍यान करें और फिर घर के मुख्‍य दरवाजे के सामने गाय के गोबर से गोवर्द्धन पर्वत बनाएं।
अब इस पर्वत को पौधों, पेड़ की शाखाओं और फूलों से सजाएं। गोवर्द्धन पर अपामार्ग की टहनियां जरूर लगाएं।
अब पर्वत पर रोली, कुमकुम, अक्षत और फूल अर्पित करें।
अब हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए कहें:
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव: ।।
अगर आपके घर में गायें हैं तो उन्‍हें स्‍नान कराकर उनका श्रृंगार करें। फिर उन्‍हें रोली, कुमकुम, अक्षत और फूल अर्पित करें। आप चाहें तो अपने आसपास की गायों की भी पूजा कर सकते हैं। अगर गाय नहीं है तो फिर उनका चित्र बनाकर भी पूजा की जा सकती है।
अब गायों को नैवेद्य अर्पित करें इस मंत्र का उच्‍चारण करें
लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
इसके बाद गोवर्द्धन पर्वत और गायों को भोग लगाकर आरती उतारें।
जिन गायों की आपने पूजा की है शाम के समय उनसे गोबर के गोवर्द्धन पर्वत का मर्दन कराएं। यानी कि अपने द्वारा बनाए गए पर्वत पर पूजित गायों को चलवाएं। फिर उस गोबर से घर-आंगन लीपें।
पूजा के बाद पर्वत की सात परिक्रमाएं करें।
इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि और भगवान विष्‍णु की पूजा और हवन भी किया जाता है।
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