अगर वर्तमान में चार धाम यात्रा के बारे में पूछा जाये तो लोग बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का नाम बताते हैं, जबकि ये वास्तविक चार धाम न होकर छोटी चार धाम हैं। भारतीय धर्मग्रंथों में …
भारत के चार धाम( Char Dham)
- बद्रीनाथ( Badrinath in the North)
- द्वारका( Dvarka in the West )
- जगन्नाथ पुरी( Puri in the East)
- रामेश्वरम( Rameshwaram in the South)
चार धाम से तात्पर्य इन चार तीर्थस्थानों से ही है। इसे आज कल बड़ी चार धाम से भी जाना जाता है।ग्रन्थों अनुसार कहा गया कि – यहाँ यात्रा न सिर्फ पाप से मुक्त करती है बल्कि जन्म और मृत्यु के चक्र से परे ले जाती है अर्थात मोक्ष का मार्ग प्राप्त करती है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार – जो पुन्य आत्मा यहां का दर्शन करने में सफल होते हैं, उनके न केवल इस जनम के पाप धुल जाते हैं, बल्कि वे जीवन-मरण के बंधन से भी मुक्त हो जाते हैं। लेकिन ये बात प्रायः सभी तीर्थों पर भी समान रूप से लागू होती है। हिन्दू धर्मग्रंथों में यह भी कहा गया है ये वही पवित्र स्थान हैं, जहां पृथ्वी और स्वर्ग एक होते हैं। जहां तक छोटी चार धाम यात्रा की बात है, तो तीर्थयात्री इन स्थानों की यात्रा में सबसे पहले यमुनोत्री और गंगोत्री का दर्शन करते हैं. फिर इन स्थानों से पवित्र जल लेकर बड़ी चार धाम (केदारनाथ ,बद्रीनाथ,….) पर जलाभिषेक करते हैं।लाखों के भीड़ में श्रद्धालु यहाँ चार धाम यात्रा करने आते है। और मोक्छ को प्राप्त करते है।
भारत में चार धाम की शुरुआत कब हुई
चार धाम की स्थापना
पुराणों के अनुसार, – महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के यहां पूजा करने की बातें सामने आती हैं। माना जाता है कि 8वीं-9वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा मौजूदा मंदिर को बनवाया था। बद्रीनाथ मंदिर के बारे में भी स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में वर्णन मिलता है। बद्रीनाथ मंदिर के वैदिक काल (1750-500 ईसा पूर्व) भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में वर्णन है। कुछ मान्यताओं के अनुसार 8वीं सदी तक यहां बौद्ध मंदिर होने की बात भी सामने आती है, जिसे बाद में आदिगुरु शंकराचार्य ने हिंदू मंदिर में दिया।
गंगा को धरती पर लाने का श्रेय पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ को जाता है। गोरखा लोग (नेपाली) ने 1790 से 1815 तक कुमाऊं-गढ़वाल पर राज किया था, इसी दौरान गंगोत्री मंदिर गोरखा जनरल अमर सिंह थापा ने बनाया था। उधर यमुनोत्री के असली मंदिर को जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। हालांकि कुछ दस्तावेज इस ओर भी इशारा करते हैं कि पुराने मंदिर को टिहरी के महाराज प्रताप शाह ने बनवाया था। मौसम की मार के कारण पुराने मंदिर के टूटने पर मौजूदा मंदिर का निर्माण किया गया है।
Importance of Char Dham