गोवत्स द्वादशी त्योहार का महत्व एवं उत्सव
Govatsa Dwadashi or Bachh Baras : इस दिन होती है गाय-बछड़े की पूजा, दान करने से भी ज्यादा लाभ।
गोवंश से जुड़े हिंदू त्योहार का नाम गोवत्स द्वादशी/बछ बारस (Bachh Baras Govats Dwadashi Vrat) है। इसे नंदिनी व्रत के रूप में भी जाना जाता है। गोवत्स द्वादशी धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है।
गोवत्स द्वादशी व्रत 2023
गोवत्स द्वादशी, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी गोवत्स (गाय का बछड़ा) के रूप में मनाई जाती है। गोवत्स द्वादशी को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। नंदिनी हिंदू धर्म में दिव्य गाय है। इस दिन गाय बछड़े को पूजने का विधान है।
- गुरुवार, 09 नवंबर 2023
- द्वादशी तिथि प्रारंभ: 09 नवंबर 2023 पूर्वाह्न 10:40 बजे
- द्वादशी तिथि समाप्त: 10 नवंबर 2023 दोपहर 12:35 बजे
गोवत्स द्वादशी का उत्सव कब मनाया जाता है
हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है।
गोवत्स द्वादशी के दिन, गायों और बछड़ों की पूजा की जाती है। यह अनोखा उत्सव गायों के प्रति धन्यवाद और कृतज्ञता प्रकट करने का विशेष दिन होता है। महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी को वासु बरस के रूप में भी मनाया जाता है और दीवाली के त्यौहार के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है।
गोवत्स द्वादशी पर पूजा के लिये शुभ मुहूर्त
- सर्वप्रथम व्रतधारी महिलाएं सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर धुले हुए साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
- तत्पश्चात गाय (दूध देने वाली) को उसके बछडे़सहित स्नान कराएं।
- अब दोनों को नया वस्त्र ओढा़एं।
- दोनों को फूलों की माला पहनाएं।
- गाय-बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं और उनके सींगों को सजाएं।
- अब तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को मिला लें। अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ प्रक्षालन करें।
- मंत्र- क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥ - गौमाता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं।
- गौमाता का पूजन करने के बाद बछ बारस की कथा सुनें।
- दिनभर व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्ट तथा गौमाता की आरती करके भोजन ग्रहण करें।
- मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सास को दें।
- इस दिन बाजरे की ठंडी रोटी खाएं।
- इस दिन गाय के दूध, दही व चावल का सेवन न करें।
- यदि किसी के घर गाय-बछड़े न हो, तो वह दूसरे की गाय-बछड़े का पूजन करें।
- यदि घर के आसपास गाय-बछडा़ न मिले, तो गीली मिट्टी से गाय-बछडे़ की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करें। उन पर दही, भीगा बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ाकर कुमकुम से तिलक करें, तत्पश्चात दूध और चावल चढ़ाएं।
गोवत्स द्वादशी/ बछ बारस महत्व
गोवत्स द्वादशी का त्यौहार दिव्य गाय ‘नंदिनी’ को समर्पित है। नंदिनी महर्षि वसिष्ठ की गाय थी, जो कामधेनु सुरभि की पुत्री थी।
गाय को हिंदू संस्कृति में एक बहुत ही पवित्र पशु माना जाता है और इसे गऊ माता के नाम से सम्मानित किया जाता है क्योंकि यह हर इंसान को पोषण प्रदान करती है।
महिलाएं गोवत्स द्वादशी का व्रत करती है इस व्रत के फलस्वरूप उनके बच्चे की खुशी और लंबे जीवन जीते हैं। अगर किसी दम्पति को संतान नहीं है तो उसको यह व्रत करने से संतान प्राप्ति का पहला प्राप्त होता है।
कुल मिलाकर गोवत्स द्वादशी का उत्सव खुशी और समृद्धि का आशीर्वाद देता है। गोवत्स द्वादशी का त्यौहार भारत के कई हिस्सों में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है।