Kanwar Yatra
श्रावण के पावन महीने में शिव के सभी भक्तों के द्वारा काँवर यात्रा का आयोजन किया जाता है। हम आप को बता दे की इस पावन अवसर के दौरान लाखों शिव भक्त तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी काँवड़ को अपने कंधों पर रखकर पैदल चलकर लाते हैं और बाद में वह गंगा जल शिव को चढ़ाया जाता है। इस यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को काँवरिया ( Kanwariya ) अथवा काँवड़िया ( Kanwadiya ) कहा जाता है। इस यात्रा को काँवर यात्रा ( Kanwar Yatra ) कहते है।
काँवर भोजपुरी गीत 2023 – Kanwar Bhojpuri Geet 2023
Kanwar Yatra एक साल में एक बार सावन के सोमवार से शुरू होती है। इस दौरान शिव भक्त भगवान शिव के बहुत ही नजदीक होते है और सावन सोमवार व्रत करके अपनी मनोकामना पूरा करने इच्छा रखते है। सावन का सोमवार कब से शुरू है ? इस बार सावन का पहला सोमवार, सोमवार, 10 जुलाई 2023 से शुरू है। इस दौरान भक्त सावन सोमवार व्रत कथा भी सुनते है।
काँवर यात्रा कैसे शुरू हुई – Kanwar Yatra Kaise Shuru Hui
कहा जाता है की लंका के राजा रावण ने सबसे पहले काँवर यात्रा की शुरुआत और रावण को पहला काँवरिया कहा जाता है। रावण के अलावा अयोध्या के राजा राम में भी काँवर यात्रा की। ऐसा माना जाता है की राम ने कांवड़िया बनकर सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था।
काँवर पौराणिक कथा – Kanwar Pauranik Katha
काँवर के पौराणिक कथा की अगर बात करे तो माना जाता है की जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया जा रहा था तब उस मंथन से 14 रत्न निकले थे। जो चौदह रत्न निकले थे उनमे से एक हलाहल विष भी था, जिससे सृष्टि नष्ट होने का भय था। तब भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए उस विष को पी लिया था और उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव इतना अधिक था की इससे महादेव का कंठ नीला पड़ गया था और इसी कारण वस उनका नाम नीलकंठ पड़ा। कहा जाता है की रावण शिव का सच्चा भक्त था। रावण काँवर में गंगाजल लेकर आया काँवर यात्रा की और उसी गंगा जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया और तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली।