Kartik Purnima – कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व, पूजा विधि और कथा

Kartik Purnima 2020

kartik purnima kab hai || Kartik Purnima 2023  ||  Tripura purnima 2023 || कार्तिक  पूर्णिमा 2023

Kartik Purnima 2023 Date And Time :   कार्तिक  पूर्णिमा ( kartik purnima) 27 नवम्बर को है। हम आप को बता दे की शुभ मुहूर्त  ( shubh muhurt ) 26  नवम्बर  2023 को  15 बजकर  50 मिनट से शुरू होकर और27  नवम्बर 2023 को र 14 बजकर  50 मिनट तक का है ।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव  (  lord shiva ) ने त्रिपुरा नाम के राक्षस का वध किया था। इसलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरा पूर्णिमा ( Tripura purnima ) के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान और महाकार्तिकी भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह पूर्णिमा बहुत ही फलदायी मानी जाती है। 

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कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व – Kartik Purnima Ka Mahatva

कार्तिक पूर्णिमा ( kartik purnima ) को हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ( lord shiva) ने त्रिपुरा नाम के राक्षस को मारा था। जिसकी वजह से इस पूर्णिमा का एक और  नाम त्रिपुरी पूर्णिमा  ( tripuri purnima )भी है। इसके अलावा इस दिन गंगा स्नान को बहुत महत्व दिया जाता है। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप दान का भी विशेष महत्व दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार गंगा जी में डुबकी लगाने से मनुष्य के सरे पाप धूल जाते है। कार्तिक पूर्णिमा ( kartik purnima )को  दिया गया दान स्वर्ग में सुरक्षित रखा जाता है और मृत्यु के बाद इस दान के फल की प्राप्ति उसे स्वर्गलोक में होती है। इस दिन भगवान शिव ( lord shiva ) के दर्शन करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके साथ कार्तिक पूर्णिमा पर गाय का बछड़ा दान करने को भी बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।

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कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि (Kartik Purnima Puja Vidhi)

. कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। भगवान कार्तिकेय को दक्षिण दिशा का स्वामी माना जाता है। 

. सुबह के वक्त मिट्टी  के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर दीपदान करे।  

ग. भगवान कार्तिकेय की पूजा से पहले एक साफ चौकी लेकर उस पर गंगाजल छिड़कें और उस पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं। 

घ. इसके बाद उन्हें पुष्प  , घी और दही आदि अर्पित करके उनके मंत्र ‘देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥’ का जाप करें और उनकी विधिवत पूजा करें।

च.  भगवान कार्तिकेय की कथा सुनें या पढ़ें और इसके बाद भगवान कार्तिकेय की धूप व दीप से आरती उतारें।भगवान कार्तिकेय की आरती उतारने के बाद उन्हें गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाएं।

. घर में हवन या पूजन करे।

ज. भगवान विष्णु की पूजा करे।

झ. श्री विष्णुसहस्रत्रनाम का पाठ करे।

ट. शाम के समय भी मंदिर में दीपदान करे।

ठ.  सूर्योदय होने से पहले स्नान करे और अगर पास में गंगा नदी है तो वह जाकर स्नान करे।

कार्तिक पूर्णिमा की कथा ( kartik purnima ki katha):

पौराणिक कथा के अनुसार एक राक्षस था जिसका नाम त्रिपुर था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। त्रिपुर की तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने त्रिपुर के इस कठोर तप को तोड़ने का निर्णय लिया। जिसके लिए उन्होंने बहुत ही सुंदर देवबाला (apsara ) त्रिपुर के पास भेजीं। लेकिन फिर भी त्रिपुर की तपस्या भंग नही हुई। जब त्रिपुर की तपस्या भंग नही हुई तो अंत में ब्रह्मा जी को विवश होकर त्रिपुर के सामने प्रकट होना ही पड़ा। इसके बाद ब्रह्मा जी ने त्रिपुर को वरदान मांगने के लिए कहा। त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से वर में मांगा कि उसे न तो कोई देवता मार पाए और न हीं कोई मनुष्य। ब्रह्मा जी ने त्रिपुर को यह वरदान दे दिया। जिसके बाद त्रिपुर ने लोगों पर अत्याचार करना शुरु कर दिया। त्रिपुर के अंदर अहंकार इतना बढ़ गया कि उसने कैलाश पर्वत पर ही आक्रमण कर दिया। जिसके बाद भगवान शिव और त्रिपुर के बीच में बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध काफी लंबे समय तक चला। जिसके बाद भगवान शिव ने ब्रह्मा जी और श्री हरि नारायण विष्णु की मदद से त्रिपुर का अंत कर दिया।

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