नरक चतुर्दशी दिवाली के प्रमुख त्यौहार में से एक है। यह त्यौहार कार्तिक में कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी कब है ?
नरक चतुर्दशी 14 नवंबर, शनिवार को है।
नरक चतुर्दशी का त्यौहार कैसे मनाया जाता है ?
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर शरीर पर तेल लगाना चाहिये। उसके बाद पानी में चिरचिरी (अपामार्ग) के पत्ते डालकर उस पानी से स्नान करे। उसके बाद भगवान विष्णु और भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन करना करना चाहिए। इससे आप के पाप घट जाते है।
इस दिन को यम दीपम के नाम से भी जानते हैं। इस याम के नाम का एक दीपक जलाया जाता है ऐसा करने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है।
नरक चतुर्दशी की कहानी
नरक चतुर्दशी से जुड़ी बहुत सी कहानिया है जो की इस प्रकार है –
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने इस दिन नरकासुर का वध किया था। नरकासुर वही रक्षष है जिसने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था। नरकासुर से मुक्त होने के बाद उन कन्याओ ने कहा की समाज उनको सम्मान नहीं देगा और स्वीकार नहीं करेगा। कन्याओ की याचना पर। भगवान श्री कृष्णा ने कन्याओं से विवाह कर उनका जीवन उद्धार किया। इस तरह से भगवान श्री कृष्णा की 16 हजार रनिया भी हुई। नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के के सम्मान और भगवान श्रीकृष्णा के प्रति कृतग्यता व्यकत करने के रूप में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई।
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार रंति देव एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। मृत्यु के बाद जब यमदूत उन्हें नरक ले जाने लगे तो उन्होंने कहा की मैंने तो कोई पाप नहीं किया फिर मुझे नरक क्यों ले जा रहे हो? यमदूतों ने बताया कि एक बार आपके द्वार से एक व्यक्ति भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है। तब राजा रंति देव ने याचना की और कहा मुझे प्राच्यताप का एक मौका दीजिए। यमदूतों ने राजा रंति देव को एक वर्ष का समय दिया। उसके बाद राजा ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें सारी बात बताई और अपने पाप कर्म को दूर करने का उपाय पूछा। ऋषियों इस पाप से मुक्ति के लिए राजा को कार्तिक मास की चतुर्दशी को व्रत रखने और ब्राह्मण को भोजन करने से इस पाप से मुक्ति मिल जायगी। और हुआ भी यही राजा ने ऐसा ही किया और नरक जाने से बच गए। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति के लिए कार्तिक चतुर्दशी व्रत प्रचलित हो गया।