रविवार व्रत कथा, पूजा विधि, महत्व और लाभ रविवार व्रत कैसे करे।
Ravivar Vrat – Sunday Fast
सूर्यदेव भगवान की पूजा रविवार को करने से विशेष लाभ और सुखी की प्राप्ति होती है। रविवार को सूर्य भगवान की पूजा करने से व्यक्ति समस्त कष्टों से मुक्ति और सूर्य देव की कृपादृष्टि व्यक्ति पर बानी रहती है। रविवार को सूर्यदेव की पूजा का उल्लेख नारद पुराण में भी है। जैसा हम सभी जानते है की सूर्य नवग्रहों सबसे महत्वपूर्ण है, और नवग्रह शांति पूजा विधि के अनुसार सूर्योपासन करने से समस्त ग्रहों की शांति हो जाती है, इसलिए ऐसा माना जाता है की हर व्यक्ति को रविवार का व्रत रखना चाहिए, इस दिन प्रातःकाल में सूर्यदेव की विधि अनुसार पूजा करके सूर्यनमस्कार करना चाहिए| इस पूजा से व्यक्ति का पूरा जीवन सुखों से भर जाता है।
रविवार सूर्यदेव व्रत विधि
- सूर्यदेव का रविवार व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार से प्रारंभ किया जा सकता है।
- सूर्य भगवान के रविवार व्रत के लिये पूजा की आवश्यक सामग्री जैसे की लाल चन्दन, लाल वस्त्र, गुड़, गुलाल, कंडेल का फूल इत्यादि एकत्रित कर लेनी चाहिए।
- सूर्यदेव की पूजा सूर्यास्त से पहले करे और भोजन मात्र एक समय या फलाहार करे।
- सूर्यदेव का रविवार व्रत कम से कम एक वर्ष या फिर पांच वर्षों तक करना चाहिए।
- रविवार के दिन सबसे पहले प्रातःकाल में स्नान इत्यादि से निवृत हो कर लाल वस्त्र धारण करे और मस्तक पर लाल चन्दन का तिलक करे।
- तत्पश्चात, एक ताम्बे पात्र में जल लेकर उसमे अक्षत, लाल रंग के पुष्प और रोली इत्यादि डाल कर “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:” मंत्र का जाप करते हुये सूर्य भगवान को श्रद्धापूर्वक अर्ध्य अर्पण करे। और सूर्यदेव को प्रणाम करे।
रविवार का व्रत के समय भोजन सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए। भोजन बिलकुल सात्विक होना चाहिए, किसी भी प्रकार के गरिष्ठ, तला हुआ, मिर्च मसालेदार नहीं खाना खाये। बल्कि फल, जल, दूध या दूध से बने हुए भोज्य पदार्थ ज्यादा सही रहेंगे।
यदि आप बिना भोजन किये अगर सूर्यास्त हो जाता है, तो अगले दिन सूर्य उदय के पश्चात सूर्य को अर्ध्य प्रदान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। भोजन में गुड़ का हलवा खाया जा सकता है।
सबसे अंतिम रविवार को जातक को विधिवत उद्यापन करना चाहिये, और एक योग्य ब्राह्मण को बुलाकर हवन करवाना चाहिये।
रविवार व्रत रखने के समय पूर्णरूप से ब्रम्हचर्य का पालन करना चाहिए। दिन में सोना नहीं चाहिए बल्कि सूर्यदेव का स्मरण और उसने जुड़ी कहानिया कथाये पढ़े।
इस क्रिया के बाद में किसी दंपत्ति को घर बुलाकर भोजन करवाना चाहिये और, उनको दक्षिणा एवं लाल वस्त्र प्रदान देना चाहिये। इस प्रकार सूर्यदेव का रविवार व्रत सम्पूर्ण माना जाता है।
सूर्यदेव रविवार व्रत के लाभ – Benefits of Sunday Vrat
जैसे की आप पहले ही बता दिया है की रविवार को सूर्यदेव की पूजा और व्रत करने से सभी तरह के पापो से मुक्ति मिलती है, साथ ही अगर आप सूर्य देव का रविवार व्रत पूरी निष्ठां से करते है आप की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकता है।
रविवार व्रत रखने और सूर्यदेव की पूजा करने से व्यक्ति चर्म रोग और नेत्र रोग रोग से बचा रहता है, और इसके साथ ही व्यक्ति को सूर्यदेव का दीर्घायु, सौभाग्यशाली और आरोग्यवान आशीर्वाद मिलता है। साथ रविवार व्रत से व्यक्ति के घर में लक्ष्मी माता निवास करती, वैभव और सुख शांति बनी रहती है।
सूर्यदेव रविवार व्रत कथा
बहुत समय पहले एक नगर में एक बूढी अम्मा रहती थी। उनकी उम्र कभी हो चुकी थी तो हर रविवार को सुबह जल्दी उठ कर और स्नान इत्यादि से निवृत्त हो कर,अपने घर के आंगन को गोबर से लीपती थी। उसके बाद सूर्य भगवान कि पूजा करती थी, भगवान को प्रसाद भोग लगाने के बाद ही भोजन करती थी।उसका जीवन यापन बहुत ही सुख शांति से कट रहा था क्योंकि सूर्य भगवान् के आशीर्वाद से उनको कोई कष्ट नहीं था। बहुत ही कम समय में उसके ऊपर लक्ष्मी माता कि कृपा भी हुई और उसने धन वैभव इत्यादि प्राप्त हुआ। उसकी सुख शांति और वैभव को देख कर उनके पड़ोसी ईष्यालु हो गए।
बूढी अम्मा के पास अपनी कि कोई गाय नहीं थी इसलिए हर रविवार को अपने आंगन को लीपने के लिए पड़ोसी की गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने उसे परेशान करने के लिए अपनी गाय को घर के अंदर बाँध दिया इसलिए बुढ़िया उस रविवार को अपने घर का आंगन लीप न सकी। आंगन न लीप पाने के कारण बूढी अम्मा ने सूर्य भगवान को जल अर्पण नहीं किया और न ही भोग लगाया, और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बूढी अम्मा भूखी-प्यासी सो गई। रात के समय स्वप्न में
भगवन सूर्यदेव ने उसे दर्शन दिए, और उस दिन व्रत न करने तथा उन्हें भोग न लगाने का कारण पूछा।
बूढी अम्मा ने बहुत ही करुण स्वर में सारी बाते सूर्य भगवन को बताई। सूर्य भगवान ने अपनी भक्त बूढी अम्मा की परेशानी का कारण जानकर उसके सब दुःख दूर करते हुए कहा, “हे माता! तुम प्रत्येक रविवार को मेरी पूजा और व्रत करती हो। मैं तुमसे अति प्रसन्न हूं और तुम्हें आशीर्वाद स्वरुप गाय प्रदान करता हूं जो आप के घर-आंगन को सुखो से भर देगी। आप की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। निर्धनों के घर में धन की वर्षा होती है। शारीरिक दुःख दर्द नष्ट होते हैं। मेरा व्रत करते हुए प्राणी मोक्ष को प्राप्त करता है।” स्वप्न में उस बूढी अम्मा को ऐसा वरदान देकर सूर्य भगवान अन्तर्धान हो गए।
अगली सुबह जब बूढी अम्मा उठी तो वह अपने घर में एक सुन्दर सी गाय और बछड़े को पा कर आश्चर्यचकित रह गयी| उसने गाय को अपने आंगन में बांधा और उसको चारा खिलाने लगी| जब पडोसी ने ये सब देखा तो बहुत ईर्ष्या हुई और तभी गाय ने सोने का गोबर किया| यह देख कर पड़ोसी कि आखें फटी कि फटी रह गयी और उसने मौका पा कर सारा सोना उठाया और अपने घर के अंदर ले गयी| और उसकी जगह अपनी गाय का सामान्य गोबर रख दिया| ऐसा वह रोज करने लगी और पड़ोसन बहुत धनवान बन गयी| बेचारी भोली अम्मा को कुछ पता नहीं था और वह पहले कि तरह ही हर रविवार को सूर्यदेव कि पूजा और व्रत करती रही| सूर्य भगवान को जब पड़ोसी की चालाकी का पता चला तो उन्होंने एक दिन तेज आंधी चलाई। आंधी की तेजी को देखकर बूढी अम्मा ने अपनी गाय को घर के भीतर बाँध दिया। अब गाय जब भी सोने का गोबर करती बूढी अम्मा उसे रख लेती| सोने के गोबर से कुछ ही दिनों में बूढी अम्मा बहुत धनी हो गई।
बूढी अम्मा की इस तरक्की को देख कर पड़ोसी की जलन का ठिकाना नहीं रहा। उसने अपने पति को बूढी अम्मा की चमत्कारी गाय के बारे में नगर के राजा बताने को कहा। राजा ने जब यह बात सुनी तो उसने अपने सैनिक भेजकर बूढी अम्मा की गाय को लाने का आदेश दिया।
सैनिक बूढी अम्मा के घर गए वह से वे गाय और उसके बछड़े को महल ले आये। उस समय बूढी अम्मा सूर्य भगवान की पूजा करे भोग लगा रही थी| बूढी अम्मा ने सैनिको से हाथ जोड़कर विनती की लेकिन वे नहीं माने| बूढी अम्मा बहुत दुखी हुई और सूर्य भगवन से प्रार्थना करने लगी।
उधर सैनिक गाय को महल ले जा चुके थे। राजा ने सोने का गोबर करने वाली गाय देख कर खुसी का ठिकाना नहीं रहा| इधर बूढी अम्मा भूख प्यास सब छोड़ कर बस भगवान से प्रार्थना विनती करती रही।
उसी रात सूर्य भगवान राजा के स्वप्न में आये ” राजा को बूढी अम्मा की गाय और उसका बछड़ा वापस करने का आदेश दिया और आज्ञा का पालन न करने पर राज्य विपत्तियों और दुखो का पहाड टूट की संभावना बताई। राजा इस बुरे स्वप्न से भयभीत हो गया और प्रति उठते ही सैनिको को आदेश दिया की गाय और उसके बछड़े को बूढी अम्मा को वापस करने का आदेश दिया| और सूर्य देव और बूढी अम्मा से अपनी गलती की माफ़ी मांगी।
इसके बाद राजा ने स्वयं रविवार का व्रत किया और अपनी प्रजा को भी ऐसा करने को कहा। राज्य की प्रजा ने भी ऐसा ही किया। सूर्यदेव का रविवार व्रत करने से राज्य के सभी सभी लोगों का घर धन-धान्य , सुख शांति से परिपूर्ण हो गया। राज्य में खुशहाली छा गई। नि:संतान स्त्रियों की गोद ममता से भर गई। लोगों के शारीरिक कष्ट दूर हो गए। राज्य में सभी लोग सुखी जीवन-यापन करने लगे।
इस तरह से रविवार व्रत की कथा समाप्त होती है।
सूर्य नमस्कार मंत्र अर्थ सहित Surya Namaskar Mantra.